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Thursday, 11 September 2014

ज़माने को कुछ कर दिखाना चाहता है

गिरह ----
ज़माने को कुछ कर दिखाना चाहता है
परों में बाँध कर पत्थर उड़ाना चाहता है

दिन ढलते उदासी ने आँचल फैला लिए 
ऐसे में वो उदास नज़्म गाना चाहता है

तुम्हारे इश्क़ में वो शायर बन गया, अब 
सुबहो शाम तुमको गुनगुनाना चाहता है

मुफलिसी ने उसको मज़बूर कर दिया
वो तुम्हारे लिए तोहफा लाना चाहता है

तुमको गैरों से ही फुरसत नहीं मिलती
तुम्हारे साथ कुछ पल बिताना चाहता है

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

ज़नाब अजय एस अज्ञात की खूबसूरत ग़ज़ल
से मिसरा ए सानी लिया गया है -
'परों में बाँध कर पत्थर उड़ाना चाहता है '

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