एक बोर आदमी का रोजनामचा

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Friday, 12 September 2014

चाह कर भी बोलने न दिया


हया ने लब खोलने न दिया

तूफां का ज़ोरकुछ  इतना
हवा के संग डोलने न दिया

पलट के उसने देखा तो था
ज़िद ने उसे रोकने न दिया

ज़िदंगी की मसरूफियत ने
तेरे बारे में सोचने न दिया

उदास तो हम भी थे मुकेश
तेरे ग़म ने हमें रोने न दिया

मुकेश इलाहाबादी ----------

एक बोर आदमी का रोजनामचा at 19:28
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