समंदर के सीने में सनसनाहट है
ज़मीं से आसमां तक हरहराट है
हैं शहर का आलम धुआं धुआं सा
अजब बेचैनी सी और घबराहट है
देखता हूँ इन परिंदों को उड़ता हुआ
लगता है दिल में भी छटपटाहट है
होगा हमारी बस्ती में अन्धेरा घना
तुम्हारे शहर में तो जगमगाहट है
तुम्हारे घर से लौटे हैं मियाँ मुकेश
क़दमों में रिन्द की लड़खड़ाहट है
मुकेश इलाहाबादी --------------------
ज़मीं से आसमां तक हरहराट है
हैं शहर का आलम धुआं धुआं सा
अजब बेचैनी सी और घबराहट है
देखता हूँ इन परिंदों को उड़ता हुआ
लगता है दिल में भी छटपटाहट है
होगा हमारी बस्ती में अन्धेरा घना
तुम्हारे शहर में तो जगमगाहट है
तुम्हारे घर से लौटे हैं मियाँ मुकेश
क़दमों में रिन्द की लड़खड़ाहट है
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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