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Sunday, 28 September 2014

समंदर के सीने में सनसनाहट है

समंदर के सीने में सनसनाहट है
ज़मीं से आसमां तक हरहराट है

हैं शहर का आलम धुआं धुआं सा
अजब बेचैनी सी और घबराहट है

देखता हूँ इन परिंदों को उड़ता हुआ
लगता है दिल में भी छटपटाहट है

होगा हमारी बस्ती में अन्धेरा घना
तुम्हारे शहर में तो जगमगाहट है

तुम्हारे घर से लौटे हैं मियाँ मुकेश
क़दमों में रिन्द की लड़खड़ाहट है

मुकेश इलाहाबादी --------------------

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