ये दिल ज़रा सी धूप ज़रा सी छाँव मांगे है
इक मासूम चेहरा ज़ुल्फ़ों की ठाँव मांगे है
कि परिंदों के पर भी शरमा जाएं हमसे
हवा से भी तेज़ रफ़्तार वाले पाँव मांगे है
कागज़ की हो काठ की हो या फूलों की हो
किसी दरिया में न डूबे ऐसी नाव मांगे है
शहर से जब भी लौट कर आऊं मुकेश तो
वही पनघट वही बरगद वही गाँव मांगे है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
इक मासूम चेहरा ज़ुल्फ़ों की ठाँव मांगे है
कि परिंदों के पर भी शरमा जाएं हमसे
हवा से भी तेज़ रफ़्तार वाले पाँव मांगे है
कागज़ की हो काठ की हो या फूलों की हो
किसी दरिया में न डूबे ऐसी नाव मांगे है
शहर से जब भी लौट कर आऊं मुकेश तो
वही पनघट वही बरगद वही गाँव मांगे है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
No comments:
Post a Comment