ऐ ज़माना तुझे आजमा लिया
तजरबा भी बहुत कमा लिया
फूलों से एहसास ले कर मैंने
काँटों से रिश्ता निभा लिया
तुम कहते हो आँसू मोती हैं,,
लो,पलकों पे मैंने सजा लिया
मुझे भटकने का गिला नहीं
आखिर मंज़िल तो पा लिया
ज़िंदगी कब तक रूठी रहती
मुकेश मैंने उसे मना लिया
मुकेश इलाहाबादी --------
तजरबा भी बहुत कमा लिया
फूलों से एहसास ले कर मैंने
काँटों से रिश्ता निभा लिया
तुम कहते हो आँसू मोती हैं,,
लो,पलकों पे मैंने सजा लिया
मुझे भटकने का गिला नहीं
आखिर मंज़िल तो पा लिया
ज़िंदगी कब तक रूठी रहती
मुकेश मैंने उसे मना लिया
मुकेश इलाहाबादी --------
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