ये कैसी खामोशी है
अजब से बेचैनी है
सुबह के मुखड़े पे
ओस की नमी है
देखो सूरज में भी
खूं ज़दा रोशनी है
इन पीले चेहरों पे
छाई मुर्दनगी है
बाज़ार जाना है पै
जेब में अठन्नी है
मुकेश इलाहाबादी --
अजब से बेचैनी है
सुबह के मुखड़े पे
ओस की नमी है
देखो सूरज में भी
खूं ज़दा रोशनी है
इन पीले चेहरों पे
छाई मुर्दनगी है
बाज़ार जाना है पै
जेब में अठन्नी है
मुकेश इलाहाबादी --
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