वक़्त भी ठहर जाता है, तब !
दो दिल मिला करते हैं ,जब !
जाम ऐ ग़म खुद पीता रहा,,
हमने किसी को बताया,कब ?
तूफाँ, आंधी और स्याह रात
शायद के सहर न होगी अब ?
तिश्नगी और भी बढ़ जाती है
जब - जब याद आये तेरे लब
चाँद रूठा,हवा रूठी,फ़ज़ा रूठी
यहां तक की रूठ गया है रब
मुकेश इलाहाबादी ------------