एक और शाम सर्द गुज़री
ख्वाबों के इर्द गिर्द गुज़री
तेरी याद फिर फिर आयी
और फिर रात ज़र्द गुज़री
मुकेश झुलसा गयी मुझे
दिन की नदी सुर्ख गुज़री
ख्वाबों के इर्द गिर्द गुज़री
तेरी याद फिर फिर आयी
और फिर रात ज़र्द गुज़री
मुकेश झुलसा गयी मुझे
दिन की नदी सुर्ख गुज़री
मुकेश इलाहाबादी -----
No comments:
Post a Comment