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Sunday, 15 March 2015

एक और शाम सर्द गुज़री

एक और शाम सर्द गुज़री
ख्वाबों के इर्द गिर्द गुज़री
तेरी याद फिर फिर आयी
और फिर रात ज़र्द गुज़री
मुकेश झुलसा गयी मुझे
दिन की नदी सुर्ख गुज़री
मुकेश इलाहाबादी -----

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