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Wednesday, 29 April 2015

सडक एक नदी है। बस स्टैण्ड एक घाट।

सडक एक नदी है।
बस स्टैण्ड एक घाट।
इस नदी मे आदमी बहते हैं। सुबह से शाम तक। शाम से सुबह तक। रात के वक्त यह धीरे धीरे बहती है। और देर रात गये लगभग रुकी  रुकी बहती है। पर सुबह से यह अपनी रवानी पे रहती है। चिलकती धूप और भरी बरसात मे भी बहती रहती है । भले यह धीरे धीरे बहे। पर बहती अनवरत रहती है।

सडक एक नदी है इस नदी मे इन्सान बहते हैं। सुबह से शाम बहते हैं। जैसा कि अभी बह रहे हैं।
बहुत से लोग अपने घरों से इस नदी मे कूद जाते हैं। और बहते हुये पार उतर जाते हैं। कुछ लोग अपने अपने जहाज ‘कार व मोटर’ मे बैठ कर इस नदी को पार करते हैं। 

जैसे यह चौडा मोड इस नदी का एक घाट है। उसी तरह इस नदी के किनारे किनारे तमाम घाट हैं। लोग इस घाट पे इकठठा होते हैं फिर बहुत सी नावें आती हैं। जिसमे लद के ये लोग पार उतर जाते हैं या दूसरे घाट  लग जाते हैं।

मै जब सुबह इस घाट पे अपनी नाव याने की बस पे बैठने के लिये पहुंचूंगा। तब तक न जाने कितनी नावें आके जा चुकी हांगी।  न जाने कितने आदमी बह चुके होंगे इस नदी से इस घाट से इस चौडा मोड के घाट से। और न जाने कितने लोग बहने के लिये या उस पार जाने के लिये या कि किसी और घाट से लगने के इंतजार मे होंगे।
सब हबबडी मे होंगे जल्दी मे होंगे।
सिर्फ जल्दी नही होगी तो सडक की इस नदी से लगे चौडा मोड के इस घाट से लगे।
पानी के रेहडी वाले को, जिसकी रेहडी गर्मी मे पानी की टंकी मे तब्दील हो जाती है। और जाडे मे मूंगफली व भेलपूरी के ठेले मे।
नदी के किनारे यह पान वाला भी खडा रहेगा अपनी पान की गुमटी लगाये। इसे भी जल्दी नही रहती बल्कि यह दोनो तो किसी और घाट से बह के यहां आये होते हैं।

तीसरे उस ए टी एम संेटर के चौकीदार को जल्दी नही रहती। कहीं बहने की कहीं जाने की किसी घाट लगने की।
दूर चौडा मोड के चौराहे पे खडे ट्ैफिक पुलिस वाले को भी कोई जल्दी नही रहती बहने की पर वह चाहता है कि बहने वाले जल्दी जल्दी बहते रहें और इसके लिये वह सीटी बजाता रहता है हाथ की पतवार चलाता रहता है।

इसके अलावा भूरे कुत्ते को भी जल्दी नही रहती, यानी की हडबडी नही रहती क्यूं की उसे कहीं आफिस, स्कूल या काम से जाना नही होता है। लिहाजा वह इसी बस स्टैंण्ड के आस पास, नही इस घाट के आस पास जमे कूडे को सूंघता भभोडता रहता है और अगर भरे पेट होगा तो आराम से आते जाते राहगीरों को जीभ निकाल के ताकता रहेगा और पूंछ हिलाता रहेगा। और शायद यह सोचता रहेगा कि तुम लोगों से तो अच्छा मै हूं जिसे कोई हडबडी नही है या कि कहीं भी बह के जाना नही है।

हॉ। इन सब के अलावा एक पागल अधबूढा है जिसे जल्दी नही रहती वो अपने कपडों पे तमाम चीथडे लपेटे ध्ूामता रहता है। कभी कभी राहगीरों से कुछ उल जलूल बक झक करता रहता है। और पान वाले से एक आध बीडी या सिगरेट ले के शहनशाहों की तरह पीता रहता है।
कुछ लोग कहते हैं कि यह चौडा मोड का बस स्टैड जहां बना है और यह जो सडक है यह सब किसी जमाने मे इसके बाप दादों की थी जो मुआवजे मे चली गयी। यह करोडो का इकलौता वारिस था। और इसकी यह दशा इसकी प्रेमिका की वजह से हुयी है जो इसका सारा पैसा ले के किसी और प्रेमी के साथ भाग गयी है।
यह पागल प्रेमी अक्सर इस चौडे घाट का इतिहास भी बताता है।
बहर हाल लोग इसे पागल समझते हैं परे मुझे बातचीत मे पागल नही लगा। हालाकि वह भी अपने आपको ‘हिला हुआ स्टेशन’ मानता है।

पान वाला, रेहडी वाला, चौकीदर कुत्ता पागल और ट्रैफिक वाले के अलावा एक बूढी भिखारन भी इस घाट पे देखी जा सकती है या कि पयी जाती है। जो अपने आप को कभी बिहार तो कभी बंगाल तो कभी उडीसा की बताती है। सुना है उसका लडका उसे तीरथ कराने के लिये ले जा रहा था कि यह अपने बेटे से इसी सडक या कहें नदी के इसी घाट पे यानी की चौडा मोड के घाट पे बिछुड गयी थी। कुछ लोगों का मानना है कि इसका बेटा जान बूझ के अपनी इस बूढी मॉ से पिण्ड छुडाने के लिये यहां छोड के चला गया है। तब से यह यहां भीख मॉग के पेट भरती है। और रात जाने कहां सो रहती है। और दिन भर इस चौडा मोड के स्टैण्ड यानी कि घाट से अगले बस स्टैंड यानी की घाट के बीच मे बहती रहती है। जो कभी कभी किसी बस मे भी चढ जाती है और अगले स्टैड से उतर के फिर वापस आ जाती है। और इस तरह से यह बूढी भिखारन दो घाटों के बीच बहती रहती है। और इसे भी कोई जल्दी नही रहती बहने की।
खैर ...
इन सब के अलावा बस स्टैंण्ड के पास खडे आटो वाले इस इंतजार मे रहते हैं कि कोई तो उनकी नाव मे यानी की स्कूटर मे बैठे और वह भी बहना शुरु कर दें।
अब मै भी चौडा मोड के बस स्टैंड पे, नही नही सडक की नदी के किनारे बने इस घाट पे पहुंच गया हूं। बहने के लिये।
मेरे आने के पहले बहुत से बह चुके हैं। और कुछ बहने के इंतजार मे हैं। इनमे से ज्यादा तर जाने पहचाने चेहरे हैं। जो इसी घाट से रोज नदी पे उतरते है। और दूसरे घाट जा लगते हैं। फिर शाम उस घाट से इस घाट फिर लग जाते हैं।
सुबह का वक्त है सभी हडबडी मे है। हडबडी मे तो शाम को भी होते हैं पर तब वे थके थके से होते हैं। पर बह अब भी रहे होते है। एक द्याट से दूसरे घाट के लिये।

इनमे ये जो छाता लिये बालों मे जूडा बनाये छोटे कद की पर सलोनी सी कुछ कुछ मोटी से लडकी है। यह मुझे अच्छी लगती है जितनी देर यह इस घाट पे अपने बस का या कहें नाव का इंतजार करती है। मै इसे कनखियों से देखा करता हू। यह एक साफटवेयर की कम्पनी मे रिसेप्सनिस्ट है। मै जानता हूं। एक दिन इत्तफाकन उसके आफिस पहुंच गया था। इसने मुझे पहचाना था। मै तो खैर पहचानता ही था। पर इसने मुझसे सिर्फ औपचारिक बात की और मैने भी। पर यह जरुर है कि उस दिन के बाद से कभी नजरे मिल जाती हैं तो ऑखों से और होंठों को हल्का जुम्बिस दे के एक दूसरे को पहचानने की बात करते हैं। बस । बस इतना ही है। परिचय। जबकि मै इस परिचय को और आगे बढाना चाहता हूं पर शायद यह कुछ कुछ मोटी सी सांवली सी और मुझे अच्छी लगने वाली लडकी ऐसा नही चाहती।
खैर इसके जाने के पहले दो लडकियॉ या यूं कहें की सहेलियॉं या यूूूं कह सकते हो कि साथ पढने वाली लडकियां। जो कभी जीन्स टाप मे रहती तो कभी सलवार सूट मे आपस मे हसंती खिलखिलाती आती हैं और चली जाती हैं इनकी कालेज की बस आती है जो अपने वक्त से आ जाती है इन्हे ज्यादा देर इंतजार नही करना पडता जब कि मेेरी चाहत रहती है कि इनकी बस मेरी बस से देर से आया करे ताकि इनकी हंसी सुनते हुये इनकी बाते सुनते हुये इनको निहारते हुय इंतजार का वक्त कट जाये।

खैर इन सब के अलावा एक अधेड और उदास से चेहरे वाली औरत भी आयेगी इसी घाट पे इसी स्टैण्ड पे जो शायद किसी अस्पताल मे नर्स है।
ऐसा नही है कि सर्फ स्त्रियॉ या लडकियॉ ही इस स्टैड पे आती हैं बल्कि वह मोटा सा थुलथूल और अधेड भी आयेगा जो कि पहले पान खायेगा फिर गुटका खरीदेगा फिर स्टैड पे खडा हो के उस उदास औरत को मतलब बेमतलब देखेगा। फिर बस आने पे बैठ के फुर्र हो जायेंगे। वह उदास औरत और वह आदमी देानो कई बार एक ही बस से आते जाते दिखें हैं।
हालाकि आजकल ये उदास औरत कम उदास रहती है। शायद उस अधेड के साथ का असर है। हालाकि हमको इस सब से क्या। हमारी इस कविता से उस औरत की जिंदगी से क्या ?
अक्सर इस घाट पे आने वाले लडके लडकियों और औरतों को देखते रहते हैं। औरतें कहीं और देखती रहती हैं। लडकियां अपने मोबाइल से खेलती रहती हैं। कुछ लडके कान मे इयर फोन लगा के गाना सुनते रहते हैं। और कुछ हम जैसे बेवजह इधर उधर देखते रहते हैं और तमाम होडिंग और साइन बोर्ड पढा करते हैं।
खैर अब मेरी बस आ चुकी है। नही नही नाव आ चुकी है।
जिसमे चढ के अपने घाट चलदूंगा।
कल फिर इसी नदी मे बहने के लिये।

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

Tuesday, 28 April 2015

तुम्हारे खततुम्हारी तस्वीरतुम्हारे संग बिताये लम्हों के संग


तुम्हारे खत
तुम्हारी तस्वीर
तुम्हारे संग बिताये लम्हों के संग
गाड आया था
घर के पिछवाडे आंगन मे
ताकि
भूल जाउं तुमको तुम्हारी यादों के संग
और भूल भी गया था
लगभग
पर तुम्हारी यादों ने
आकाश,हवा,मिटटी,बादल व रोशनी के संग
जाने क्या साजिश की
कि उग आया एक बिरुआ
मेरे आंगन मे ठीक उसी जगह जहां गाड आया था
तुम्हारी यादें
आज,वह बिरुआ
हरश्रंगार का एक बडा सा पेड बन कर झूमता है
मेरे आंगन मे
और महमहाता है रात भर
और गमगमाता है दिन भर
और एक बार फिर मै डूब जाता हूं तुम्हारी स्म्रतियों मे
और मै भूल जाता हूं तुम्हे भूलने की बात

मुकेश इलाहाबाद ................................................

Monday, 27 April 2015

रोशनी एक नदी है

रोशनी
एक नदी है
जिसमे तैर कर
हिलग कर
हम पहुंच जाते हैं
इस पार से
उस पार
अपने गंतव्य तक
पर
रोशनी का विलोम
अँधेरा एक समुद्र है
जिसमे डूब कर
हम किसी किनारे नहीं पहुँचते

इस लिए बचो अँधेरे से
चाहे वह अंदर का हो या  बाहर का

मुकेश इलाहाबादी -----------------


Saturday, 25 April 2015

जब अंधेरा लील चुका होता है

जब अंधेरा
लील चुका होता है
दिन को
और सब कुछ डूब चुका होता है
एक काली नदी मे
तब
खिडकी से चॉद
मुठठी भर
रोशनी फेंकता है मेरे कमरे मे
और मै मुस्कुरा देता हूं

मुकेश इलाहाबादी ......

Thursday, 23 April 2015

तुम मगरूर हो तुमसे पूछा न जाएगा,

तुम  मगरूर  हो तुमसे पूछा न जाएगा,
हमसे भी हाल ऐ दिल बताया न जाएगा
वो कोई और होंगे, ईश्क में गुलामी करें
हमसे ये नाज़ो नखरे उठाया न जाएगा
आज नहीं तो कल इज़हार हो ही जाएगा
ईश्क होगा तो तुमसे छुपाया न जाएगा
अभी हम तुम अकेले हैं बता दो वरना
सरे महफ़िल, तुमसे जताया न जाएगा

मुकेश इलाहाबादी -------------------

जब भी मै कोई प्रेम गीत गाना चाहता हूँ

जब भी
मै कोई प्रेम गीत
गाना चाहता हूँ
मै, और बेसुरा हो जाता हूँ
मुँह से सिर्फ फों फों की
आवाज़ आती है
इसके बावजूद कोशिश करूँ तो
मेरा प्रेम गीत
शोक गीत में तब्दील हो जाता है
तब मेरा अधेड़ और
पकी दाढ़ी वाला चेहरा
और भी ग़मगीन व मरा - मरा लगता है 
और मेरी बीबी
इस बेसुरे गीत को सुन के
अपने तमाम दुखों के बावजूद
मुस्कुरा के किचन में काम करने चली जाती है
यह कह के
कि
अब तुम्हारी उम्र नहीं रही प्रेम गीत गाने की

मुकेश बाबू
मै तुमसे पूछना चाहता हूँ
क्या सचमुच में प्रेम गीत गाने की कोई उम्र होती है
या फिर
प्रेम गीत सिर्फ कुछ लोग ही गा सकते हैं
जिनके बाल व दाढ़ी काली हो
और जिन्हे कोई  दाल रोटी की फिक्र न हो ?
और उनके गाल मेरी तरह पिचके न हों

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Wednesday, 22 April 2015

कुछ चीज़ें होती हैं और सिर्फ होती हैं

कुछ चीज़ें
होती हैं
और सिर्फ होती हैं
जैसे कि,
गुलाब,गुलाबी होता है
और खूबसूरत होता है

आसमान नीला होता है
भव्य और प्यारा दिखता है

कोयल जब भी बोलती है
कानो को अच्छा लगता है
बिना सरगम जाने भी

उसी तरह तुम भी
मुझे अच्छी लगती हो
बस कह दिया न
अच्छी लगती हो

मुकेश इलाहाबादी ----------

 

जिन्हे हम कम जानते हैं

अक्सर
जिन्हे हम कम जानते हैं
उनके बारे मे ज़्यादा सोचते हैं
और बहुत कम सोचते हैं
जिनके बारे में
बहुत ज़्यादा जानते हैं

इसे तरह
दुनिया से बाख़बर
और नज़दीकियों से बे- खबर होते हैं
घर में माँ कई दिनों से बीमार है
कई दिनों से बुखार है
नहीं पता,
मगर
शाहरुख़ खान
और मोदी को छींक आयी है
पता है
तुम्हे क्या मालूम मुकेश बाबू ?
यही दुनिया है
और दुनिया ऐसी ही है
और ऐसी ही रहेगी
मुकेश इलाहाबादी -----------------



Tuesday, 21 April 2015

हुस्नो ईश्क की आग में जलने का मज़ा ही कुछ और है

हुस्नो ईश्क की आग में जलने का मज़ा ही कुछ और है
हज़ारों फना हो गए और सैकड़ों कतार मे हैं मुकेश जी
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------

Monday, 20 April 2015

सूरज के खिलते ही इठलाकर खिलता है सूरजमुखी ,

सूरज के
खिलते ही
इठलाकर खिलता है
सूरजमुखी ,
शरमा कर
लेकिन
नजरें झुका लेता है
तब
जब, तुम नहाकर
सूरज को देती हो जर्लाध्य

तुम्हारे
हंसने से
खिलता है
गुलाब
और झरते हैं
हरश्रंगार
जिसकी खुशबू से
महमहा जाते हैं
मेरे दिन और रात
मुकेश इलाहाबादी ---

आज भी दिल किसी के हिज़्र औ तस्सवुर में रहा आया

आज भी दिल किसी के हिज़्र औ तस्सवुर में रहा आया
सुबह से शाम तलक दिले नादाँ कल सा मायूस पाया
जब - जब फुर्सत रही दिल खयाले यार में मशगूल रहा
मुहब्बत है ही ऐसी शै जिसमे हर इंसा को डूबता पाया
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------

साथ अजनबी सा कोई कारवाँ मे रहे,,

साथ अजनबी सा कोई कारवाँ मे रहे,,
ज़िदंगी अक्सर यूँ भी तो बीत जाती है
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

दुःख, सिर्फ दुःख होता है


थोड़ी छाँव और
ज़्यादा धूप  में बैठी
बुढ़िया भी
अपने
चार करेले और
दो गड्डी साग न बिकने
पर उतना दुखी नहीं हैं
जितना नगर श्रेष्ठि
नए टेंडर न मिलने पर है

कलुवा
हलवाई  की भटटी
सुलगाते हुए अपने
हम उम्र बच्चों को  फुदकते हुए
नयी नयी ड्रेस और बस्ते के साथ
स्कूल जाते देख भी उतना दुखी नहीं है
जितना सेठ जी का बेटा
रिमोट वाली गाड़ी न पा के है

प्रधान मंत्री जी
हज़ारों किसान के सूखे से
मर जाने की खबर से
भी उतने दुखी नहीं हैं
जितना कि
मुकेश बाबू आज
कविता न लिख पाने की वज़ह दुखी  हैं

शायद ऐसा इसलिए है कि

दुःख,
सिर्फ दुःख होता है
जो सहन शक्ति के समानुपाती
बड़ा और छोटा होता है

 मुकेश इलाहाबादी -------

Thursday, 16 April 2015

शाम सिंदूरी है

तुम्हारे न रहने
के बावजूद
शाम सिंदूरी है
तुम होती तब भी
इतनी ही सिंदूरी
होती ये शाम
हाँ !
इतना ज़रूर होता
कि कुछ और रंग
उभर आते
मेरी आखों में
तेरी आखों में
और तब
यह शाम
एक अलग तरह की
सिंदूरी शाम होती

मुकेश इलाहाबादी --

मुहब्बत भी ज़रूरी है

मुहब्बत भी ज़रूरी है
ज़िंदगी वर्ना अधूरी है
हाले दिल कह तो  दूं
हया मेरी मज़बूरी है
जिस्म है पास - पास
मगर दिलों में दूरी है
चिलमन से झांको तो
शाम कित्ती सिंदूरी है
ज़रा आईना भी देखो 
आरिज़ तेरे अंगूरी हैं
मुकेश इलाहाबादी ---

Wednesday, 15 April 2015

दिल में तेरी याद रहती है

दिल में तेरी याद रहती है
लबों पे फ़रियाद रहती है
उजड़ा उजड़ा दिले -मकाँ
उदासी आबाद रहती है
है तीरगी मेरा हमसाया
वो शाम के बाद रहती है
तुम्हारे जाने के बाद से
तबियत नाशाद रहती है
मुकेश इलाहाबादी ---------

सुना था, दिन के बाद रात होती है

सुना था, दिन के बाद रात होती है
हिज़्र  के  बाद  मुलाक़ात  होती है
मुझे ऐसी ज़िंदगी दी, मेरे मौला ने
न ये बात होती है न वो बात होती है
मुकेश इलाहाबादी -------------------

ऐसा भी नही कि उनसे गुफ़्तगू न हुई

ऐसा भी नही कि उनसे गुफ़्तगू न हुई
हाल ऐ दिल छोड़, हर बात पे चर्चा हुई
मुकेश इलाहाबादी --------------------

Tuesday, 14 April 2015

दिल मे बेकली सी है

दिल मे बेकली सी है
कहीं बिजली गिरी है

शब भर रोये हो क्या
इन ऑखों मे नमी है

दर्दो ग़म की गठरी से
पीठ व कमर झुकी है

दिल के बहुत नरम हो
यही  तो तेेरी कमी है

मुकेश झुलस जाओगे,
ईश्क आग की नदी है

मुकेश इलाहाबादी --

Sunday, 12 April 2015

बिखरा - बिखरा मंज़र और मै

  1. बिखरा - बिखरा मंज़र और मै
    उदास - उदास  शहर  और   मै
    इक लम्हे को  भी आराम नही
    भागता - दौड़ता शहर  और मै
    धूप - पानी , आंधी  सह  चुकी
    उजड़ी - उजड़ी दीवार  और  मै
    स्याह, जान लेवा शब के बाद
    यह ज़र्द - ज़र्द  सहर और  मैँ 
    दूर -दूर तक कोई साहिल नहीं
    यह हरहराता  समंदर और मै

    मुकेश इलाहाबादी -------------