एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
(Move to ...)
Home
▼
Sunday, 3 May 2015
खौलती धूप बरसती है
खौलती धूप
बरसती है
दिन भर
और
उग आते हैं
फफोले
जिस्मो जॉ पे
सॉझ
मल जाती है
संदली मलहम
रिसते घावों पे
रात
तब्दील हो जाती है
रातरानी मे
जो महमहाती है
तेरे रेशमी यादों के ऑचल मे
मुकेश इलाहाबादी .
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment