आवारगी छाई रही उम्र भर
परिंदगी रास आयी उम्र भर
भले ही तू छोड़ गयी मुझको
रूह याद करती रही उम्र भर
ये और बात हँसता रहा हूँ मै
चेहरे पे मुर्दनी रही उम्र भर
इक ठिकाने की तलाश में
ज़ीस्त भटकती रही उम्रभर
मुझसे बिछड़ कर वह भी
खुश न रह सकी उम्र भर
मुकेश इलाहाबादी -----------
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