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Thursday, 25 June 2015

आवारगी छाई रही उम्र भर


आवारगी छाई रही उम्र भर 
परिंदगी रास आयी उम्र भर 

भले ही तू छोड़ गयी मुझको 
रूह याद करती रही उम्र भर 

ये और बात हँसता रहा हूँ मै 
चेहरे पे मुर्दनी  रही उम्र भर 

इक  ठिकाने  की तलाश में 
ज़ीस्त भटकती रही उम्रभर 

मुझसे  बिछड़  कर वह  भी  
खुश  न  रह  सकी उम्र  भर 


मुकेश इलाहाबादी -----------

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