ज़िंदगी जैसे ठहर गयी हो
बहती नदी रुक गयी हो
खिलखिला के हसीं थी
चांदनी सी बिछ गयी हो
दो बोल मीठे से उसके
मिश्री सी घुल गयी हो
सन्नाटा सुनता हूं, शायद
उससे कुछ कह गयी हो
मुकेश तुम चुप हो, ऐसे
जैसे ज़िदगी लुट गयी हो
मुकेश इलाहाबादी -----
बहती नदी रुक गयी हो
खिलखिला के हसीं थी
चांदनी सी बिछ गयी हो
दो बोल मीठे से उसके
मिश्री सी घुल गयी हो
सन्नाटा सुनता हूं, शायद
उससे कुछ कह गयी हो
मुकेश तुम चुप हो, ऐसे
जैसे ज़िदगी लुट गयी हो
मुकेश इलाहाबादी -----
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