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Monday, 29 June 2015

चलो,मुस्कुरा कर देखते हैं

चलो,मुस्कुरा कर देखते हैं 
ग़मो को छुपा कर देखते हैं 

वह भी तो बहुत उदास है  
उसको हंसा कर देखते हैं 

चाँद निकल आया होगा ?
छत पर जा कर देखते हैं 

जानता हूँ, वह न  मानेगी 
फिर भी मना कर देखते हैं  

महताब बदली में छुपा है 
ज़ुल्फ़ हटा कर देखते  हैं 
  


मुकेश इलाहाबादी ------

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