चलो,मुस्कुरा कर देखते हैं
ग़मो को छुपा कर देखते हैं
वह भी तो बहुत उदास है
उसको हंसा कर देखते हैं
चाँद निकल आया होगा ?
छत पर जा कर देखते हैं
जानता हूँ, वह न मानेगी
फिर भी मना कर देखते हैं
महताब बदली में छुपा है
ज़ुल्फ़ हटा कर देखते हैं
मुकेश इलाहाबादी ------
ग़मो को छुपा कर देखते हैं
वह भी तो बहुत उदास है
उसको हंसा कर देखते हैं
चाँद निकल आया होगा ?
छत पर जा कर देखते हैं
जानता हूँ, वह न मानेगी
फिर भी मना कर देखते हैं
महताब बदली में छुपा है
ज़ुल्फ़ हटा कर देखते हैं
मुकेश इलाहाबादी ------
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