एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
(Move to ...)
Home
▼
Sunday, 7 June 2015
बुझा के चराग़ सोचता है
बुझा के चराग़ सोचता है जालिम, की अब उजाला न होगा
उसको क्या मालूम दिल मेरा किसी आफताब से कम नही
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------
-----
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment