छाँव ही छाँव ढूंढते रहे
धूप को ही उलीचते रहे
धूप को ही उलीचते रहे
आब -ऐ -ईश्क़ न मिला
तिश्नगी अपनी पीते रहे
तिश्नगी अपनी पीते रहे
शब्, ग़मे अब्र खूब बरसे
जिस्मो जाँ से भीगते रहे
मुकेश दीवारे हया न टूटी
जबकि रोज़ ही मिलते रहे
मुकेश इलाहाबादी -----
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