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Friday, 31 July 2015

कभी हमारे घर भी तुम आया करो हमसे भी,

कभी हमारे घर भी तुम आया करो हमसे भी, दो चार बातें किया करो हर बार हम ही आवाज़ देते हैं,कभी तुम बिन बुलाए भी आ जाया करो ज़िदंगी मेरी कट रही है सराबों में कभी बादल बन बरस जाया करो ये दिल ऐ गुलशन उजड़ा उजड़ा है कभी तो मोगरे सा खिल जाया करो मुकेश इलाहाबादी --------------

जब -जब भी तेरा ख़याल आता है

जब -जब भी तेरा ख़याल आता है 
दिले दरिया में चाँद उतर आता है 

तेरा मासूम चेहरा पाकीज़ा आँखें 
तुझमे ख़ुदा का नूर नज़र आता है 

अक्सरहां बर्फ सा जमा रहता हूँ 
तेरा संग साथ पा, पिघल जाता हूँ 

यूँ तो पत्थर बंधे हैं मेरे पाँव में 
तेरा ईश्क है जो उड़ाए जाता है 

तुझसे मिलने की जुस्तजूं है जो 
मुकेश सफर में बढ़ाए  जाता है 

मुकेश इलाहाबादी -----------

Wednesday, 29 July 2015

ग़म तो बहुत सारे हैं बताने को

ग़म तो बहुत सारे हैं बताने को 
कोई साथी न मिला सुनाने को 
दिले पत्थर पे लकीर खींचा था 
लोग तुले हैं उसे भी मिटाने को 
इक तो नाव कागज़ की अपनी 
लहरें भी लगी हैं उसे डुबाने को 
तेरी यादें तेरी बातें तेरा चेहरा 
हमें मुद्दतों लगे तुझे भुलाने को 
पढ़ लो तुम मेरी किताबे ज़ीस्त 
हमारे पास कुछ नहीं छुपाने को 

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Tuesday, 28 July 2015

दर्दे ईश्क से बढ़ कर कोई दर्द नहीं होता

दर्दे ईश्क से बढ़ कर कोई दर्द नहीं होता 
ये दर्द भी हर किसी को नसीब नहीं होता 
यूँ तो फलक पे चमकते हैं हज़ारों सितारे 
हर सितारा तो चाँद के क़रीब नहीं होता

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Thursday, 16 July 2015

तुम कुछ कहना कुछ बोलना चाहती हो

तुम कुछ कहना कुछ बोलना चाहती हो
मै भी कुछ कहना कुछ सुनना चाहता हूँ

अच्छा है बहुत कुछ खामोशी कह देती है

मुकेश इलाहाबादी -----------------

Tuesday, 14 July 2015

जी तो चाहता है मुस्कुराने को

जी तो चाहता है मुस्कुराने को
अपने दर्दों ग़म गुनगुनाने को
स्याह नागन सी रात फ़ैली है
इस नागन से दिल लगाने को
इक  उदास समंदर है सीने में
दिल तो करता है डूब जाने को
कई बार दिल करता है मुकेश
तुझे  अपनी ग़ज़ल सुनाने को

मुकेश इलाहाबादी ------------

रूठ जाता है फिर ख़ुद ब ख़ुद मान जाता है

रूठ जाता है फिर ख़ुद ब ख़ुद मान जाता है
मुहब्बत कैसे की जाती है उसे खूब आता है

कभी शोखी,कभी गुस्ताख़ी कभी मुस्काना
ईश्क ज़िंदा रहे,वो नुस्खे खूब आजमाता है

मुझको भाता है उसका अंदाज़े फकीराना
बड़े से बड़े दर्दो -ग़म, हंस के टाल जाता है

वो कहता है जिस्म इक फूल ज़िंदगी महक
खिलना महकना और फिर मुरझा जाता है

जो कभी ग़मगीन देखता है वो मुझको, तो
आ कर मुकेश गुदगुदाता है हंसा जाता है

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

Friday, 10 July 2015

ज़ह्र के सिवा मैंने पिया क्या है ?

ज़ह्र के सिवा मैंने पिया क्या है ?
दर्द के सिवा तूने दिया क्या है ?

सिवा चंद लम्हों की मुलाक़ात, 
बता मैंने तुझसे लिया क्या है ?

उम्र भर की दे गया सज़ा,बता, 
ईश्क के सिवा किया क्या है ?

मुकेश इलाहाबादी --------------

Wednesday, 8 July 2015

बित्ता भर जमीन की खातिर


एक 
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बित्ता भर जमीन की खातिर
आंगन मे उठ गयी दीवारें
पिता और चाचा
सालों साल
चप्पल चटकाते चक्कर लगाते रहे 
अदालत का,
खुद भूखे रह कर
पेट भरते रहे
वकीलों का
दलालों का
अदालत का 

दो 
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बात सिर्फ इत्ती सी थी
कोरी जात के लडके के साथ
बाम्हन की लडकी 
आंख लडाते अमराई मे दिखी थी
लाठियां निकल आयीं
खून खच्चर हुआ 
अब दोनो पार्टियां थाने मे बंद हैं
लडका - लडकी दोनो सहमे हुये हैं
अपनी जॉन के लिये डरे हुये हैं

तीन 
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‘क’ बहुत खुश है
आज उसे पांच हजार मिले हैं
आज फिर उसने झूठी गवाही दी है
आज वह शाम को जी भर के दारु पियेगा
बेटे के लिये फुग्गा और 
बीबी के लिये मलाई ले जायेगा
बिना यह सोचे हुये कि 
उसकी झूठी गवाही से 
एक गुनहगार 
उम्र भर जेल काटेगा 
या कि फांसी के फंदे पे झूल जायेगा 


ये तो सिर्फ झांकी है।
उस समाज की जो हमे दिन रात 
सत्य अहिंसा और प्रेम का पाठ पढाता रहता है।

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

Monday, 6 July 2015

चलो, ये रिश्ता भी बुरा नहीं

आप कैसे हैं ?
मै ठीक हूँ 
और आप ?
जी, मै  भी ठीक हूँ 
हूँ.…  और घर में ??
जी, सब ठीक 
आप, बहुत दिनों से दिखे नहीं 
जी, कुछ व्यस्त था, इन दिनों, आप भी तो नहीं दिखी?
हाँ, मै  भी कुछ उलझी थी, कई काम थे 


ऐसे ही कुछ सवाल जवाब के सिवा भी 
तुम कुछ सुनना  चाहती हो,
और मै कहना 

खैर ,,,,
चलो, ये रिश्ता भी बुरा नहीं  

मुकेश इलाहाबादी ----------------


हे राजन!

हे राजन!
तुम्हारी किर्ति
सूरज की किरणों सा
पूरे संसार मे फैले
तुम्हारी किर्ति बढने से
राज्य की कीर्ति बढेगी

हे राजन!
तुम्हारी मंगल कामना करते हुये
तुम्हारे सम्मान का ध्यान रखते हुये
हम आपसे सिर्फ इतना कहना चाहते हैं
कि,
चद्रयान और मंगलयान की योजना बनाने के पहले
यह सुनिस्चित कर लिया जाए कि
राज्य के अतिंम व्यक्ति तक भोजन पहुंच गया है या नही
यह आप और राज्य दोनो के स्वास्थ्य के लिये अच्छा होगा

हे राजन!
हम आपसे अपेक्षा करते हैं कि
आप, आपसे पहले हुये राजाओं और ऋ़षियों दवारा स्थापित
‘वसुधैव कुटुम्बकम’
‘सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्व भवंतु निरामयः’
जैसे उच्च आर्दशों का आप व आपके मंत्री पालन करेंगे, और
राजर्धम की गरिमा को बनाये रखेंगे

इसी प्रार्थना के साथ
हम आपकी और पूरे राज्य की मंगल कामना करते हैं।
और यह यह अपेक्षा रखते हैं कि
आपके राज्य मे प्रजातंत्र की पूरी रक्षा रहेगी और
सभी धर्म सभी सम्प्रदाय सभी व्यक्ति उचित सम्मान पायेंगे
समाज द्वारा निर्धारित स्वतंत्रता का उपयोग करते हुये
सुख शांति से जीवन व्यापन करते रहेंगे

हे राजन!
इस प्रार्थना के साथ हम आपको पुनः प्रणाम करते हैं।

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

Friday, 3 July 2015

मैंने भी, तुमसे पूछा था

औरों की तरह
मैंने भी, तुमसे पूछा था
'क्या तुम मुझे प्यार करती हो ?'
तुम जवाब में
मुस्कुरा कर चुप रह गयी थी
पर
बाइक की पिछली सीट पर बैठ कर
मेरी कमीज पे तुमने
अपनी तर्जनी उंगली
से लिखा था  "ईलू'
और उसे फिर तुमने अपनी ही
हथेली से मिटा दिया था
वही स्पर्श
वही हर्फ़
आज भी, महमहाता है
मेरी पीठ पर, रातरानी सा
(काश तुमने उसे लिख के न मिटाया होता )

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

जाती - जाति

बिट्टो

एक
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मेरा नाम बिट्टो है,
कल मेरे गाँव का मेला है 
सब खुश हैं
मेरी सहेली चुनिया
कह रही थी वह अब की
कान के बुँदे और कंगन लेगी
गुड्डू कह रहा था
वह इस बार बाबू से कह के
मेले में नुमाइश देखेगा
मेरा छुटका भाई
बैट बाल लेगा
अम्मा अपना टूटा तवा बदलेंगी
बाबू कुछ नहीं लेंगे
और मै भी कुछ नहीं लूंगी
क्यों कि हमें मालूम है
उनके पास बहुत ज़्यादा पैसे नही हैं
मै सिर्फ चुपचाप मेला देख के आ जाऊँगी
दो,
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मै बिट्टो
मेरे बाबा दिहाड़ी पे गए हैं
अम्मा भी काम पे गयी है
लोगों के यहाँ चौक बासन करती है
मै घर पे तब तक छुटके (भाई) को सम्हालती हूँ
मै तीन क्लास तक पढ़ी हूँ
पर इस बार मेरी पढ़ाई छुड़ा दी गयी
छुटके को जो सम्भालना रहता है
और माँ के न रहने पर पानी भरना
झाड़ू बुहारू करना होता है
रात बापू कह रहा था
छुटके को अंगरेजी स्कूल में पढ़ाएगा
चाहे जो हो जाए
वैसे मेरा मन भी स्कूल जाने का होता है
पर, तब छुटके को कौन संभालेगा ?
तीन,
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वैसे तो मेरा नाम बिट्टो है
पर पप्पू मुझे 'मेरी जान' कहता है
मुझे ये अच्छा नहीं लगता
वो देखता भी अजीब तरह से है
मैंने ये बात अम्मा को बताई थी
अम्मा ने मुझी को डांट दिया
'तो तू उसकी और देखती ही क्यूं है ?'
मुझे ये बात बापू से बताने में
शर्म आती है
मै क्या करूँ ?
वैसे पप्पू का 'मेरी जान' कहना अच्छा भी लगता है
पर उसकी नज़रें बड़ी गंदी हैं '
अरे ! मै भी कितनी देर से बातें करने में लगी हूँ
चलूँ झाड़ू बुहारू कर लूँ
वरना अम्मा आ के चिल्लाएँगी
छुटका भी तो उठने वाला है
उठते ही रोयेगा और कुछ खाने को मांगेगा
अच्छा मै चलती हूँ फिर बात करूंगी
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

Wednesday, 1 July 2015

माँ पढ़ लेती है

माँ पढ़ लेती है
अपनी मोतियाबिंदी आखों
और मोटे फ्रेम के चश्मे से
रामायण की चौपाइयां
हिंदी अखबार की
मुख्य मुख्य ख़बरें
यहाँ तक कि, 
मोबाइल में
अंग्रेज़ी में लिखे नाम भी
पढ़ लेती हैं
कि यह छोटके का फ़ोन है
कि यह बड़के का फ़ोन है
कि बिटिया ने फ़ोन किया है
भले ही बड़ी बड़ी किताबें न पढ़ पाती हों 
पर आज भी पढ़ लेती हैं
हमारा चेहरा
हमारा मन
हमारा दुःख
हमारी तकलीफ

मुकेश इलाहाबादी --