रात,
चाँद, नींद और ख्वाब
बूँद - बूँद
भरते हैं अमृत
जिसे सुबह होते ही
सूरज
साजिशन
बस के धक्कों
सड़क के जाम
बॉस की झिडक़ियों
बढ़ती महंगाई
और अनिश्चित भविष्य
के साथ मिलकर सोख लेता है
सारे अमृत बूँद
लिहाज़ा एक बार फिर
मै निढाल हो
गिर पड़ता हूँ
रात के आँचल में
बूँद बूंद भरने को
जीवन घट
मुकेश इलाहाबादी -------
चाँद, नींद और ख्वाब
बूँद - बूँद
भरते हैं अमृत
जिसे सुबह होते ही
सूरज
साजिशन
बस के धक्कों
सड़क के जाम
बॉस की झिडक़ियों
बढ़ती महंगाई
और अनिश्चित भविष्य
के साथ मिलकर सोख लेता है
सारे अमृत बूँद
लिहाज़ा एक बार फिर
मै निढाल हो
गिर पड़ता हूँ
रात के आँचल में
बूँद बूंद भरने को
जीवन घट
मुकेश इलाहाबादी -------
No comments:
Post a Comment