जब
तप रहा होता है सूरज
पूरी शान से
और सुख रहा होता है
खेत खलिहान
नदी पोखर
यहाँ तक की
सूख चुके होती है
जुबां और तालू भी
तब भी ,
देखूं
तुम्हारी कजरारी आखों में
तो उत्तर आते हैं
काले मेघ
और भीग जाता है
तन और मन - दोनो
मुकेश इलाहाबादी -------------------
तप रहा होता है सूरज
पूरी शान से
और सुख रहा होता है
खेत खलिहान
नदी पोखर
यहाँ तक की
सूख चुके होती है
जुबां और तालू भी
तब भी ,
देखूं
तुम्हारी कजरारी आखों में
तो उत्तर आते हैं
काले मेघ
और भीग जाता है
तन और मन - दोनो
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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