ग़र, तू कहे तो कुछ देर सो लूँ
तेरे काँधे पे सर रख कर रो लूँ
लगे हैं तमाम दाग़ दामन में
पश्चाताप के आंसुओं से धो लूँ
जब आ ही गया हूँ तेरे शहर
क्यूँ न कुछ देर तेरे घर हो लूँ
मुकेश इलाहबदी -------------
तेरे काँधे पे सर रख कर रो लूँ
लगे हैं तमाम दाग़ दामन में
पश्चाताप के आंसुओं से धो लूँ
जब आ ही गया हूँ तेरे शहर
क्यूँ न कुछ देर तेरे घर हो लूँ
मुकेश इलाहबदी -------------
No comments:
Post a Comment