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Saturday, 16 September 2017

साँझ की दहलीज़ पे


नेट खोलते ही तुम्हारा मैसेज मिला, दिल थोड़ा खुश हुआ पर न जाने क्यूँ,
आज फिर ज़िंदगी साँझ की दहलीज़ पे इंतज़ार के तेल में डूबा उदासी का दिया जला गयी,
ऐसे में तुम बहुत याद आईं हालांकि तुम्हे भूला ही कब हूँ ?
अभी भोजन करूंगा। कुछ देर नेट पे बैठूंगा, फिर सो जाऊँगा, एक और उदास सुबह के लिए
एक और उदास साँझ के लिए , एक और अंतहीन मृगतृष्णा में भटकते रहने के लिए,

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