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Friday, 22 December 2017

सांझ होते बिखर जाता हूँ,

सांझ होते बिखर जाता हूँ,
शुबो ख़ुद ही संवर जाता हूँ

ज़िदंगी जिधर ले जाती है
सिर्फ उधर - उधर जाता हूँ

आवारा हूँ और बंजारा भी
मत पूछ ! किधर जाता हूँ 

तू हँसती है खिल्ल - खिल्ल
मै खुशी से मर मर जाता हूँ

चाँद जब ढलने को होता है
रात मुकेश तब घर जाता हूँ 

मुकेश इलाहाबादी ---------

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