सांझ होते बिखर जाता हूँ,
शुबो ख़ुद ही संवर जाता हूँ
ज़िदंगी जिधर ले जाती है
सिर्फ उधर - उधर जाता हूँ
आवारा हूँ और बंजारा भी
मत पूछ ! किधर जाता हूँ
तू हँसती है खिल्ल - खिल्ल
मै खुशी से मर मर जाता हूँ
चाँद जब ढलने को होता है
रात मुकेश तब घर जाता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------
शुबो ख़ुद ही संवर जाता हूँ
ज़िदंगी जिधर ले जाती है
सिर्फ उधर - उधर जाता हूँ
आवारा हूँ और बंजारा भी
मत पूछ ! किधर जाता हूँ
तू हँसती है खिल्ल - खिल्ल
मै खुशी से मर मर जाता हूँ
चाँद जब ढलने को होता है
रात मुकेश तब घर जाता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------
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