एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday, 22 December 2017
चराग़ नही हूँ बुझ जाऊँ हवा के झोंके
से अलाव हूँ मैँ बुझते - बुझते ही बूझूँगा मै अभी रात है, उफ़ुक़ पे जा के डूबा हुआ हूँ शुबो होते ही आफताब सा फिर उगूँगा मै मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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