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Sunday, 14 January 2018

वक़्त के खामोश दरिया में

वक़्त
के खामोश दरिया में
हम दोनों
पाँव लटकाये बैठे हैं

दूर,
जीवन का सूरज अस्तगत है

रात,
अपना श्रृंगार करे

इसके पहले 'मै '
तुम्हरी स्याह ज़ुल्फ़ों
में ख़ुद को क़ैद कर के
खो जाना चाहता हूँ

न ख़त्म होने वाली
रात की नदी में

ओ ! मेरी सुमी
ओ ! मेरी प्रिये

मुकेश इलाहाबादी --------------

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