दिन भर की थकन से ख़ुद को ताज़ा दम पाता हूँ
रात होते ही तेरे ख्वाबों की नदी में उतर जाता हूँ
तुम्हारा ईश्क़ मेरे लिए तो संजीवनी बूटी जैसा है
ज़माना रोज़ रोज़ मारता है रोज़ रोज़ जी जाता हूँ
जानता हूँ समंदर की लहरें आ आ कर मिटा देंगी
फिर भी रेत् पे तुम्हारा नाम लिखता हूँ मिटाता हूँ
मै मुफ़लिस मेरे पास सिर्फ मुहब्बत की चादर है,
मेरे घर मेहमान आता है तो वही चादर बिछाता हूँ
बूढा हो गया हूँ मेरे पास चंद पुरानी यादे ही शेष हैं
जो भी मिलता है मुकेश वही वही किस्सा सुनाता हूँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
रात होते ही तेरे ख्वाबों की नदी में उतर जाता हूँ
तुम्हारा ईश्क़ मेरे लिए तो संजीवनी बूटी जैसा है
ज़माना रोज़ रोज़ मारता है रोज़ रोज़ जी जाता हूँ
जानता हूँ समंदर की लहरें आ आ कर मिटा देंगी
फिर भी रेत् पे तुम्हारा नाम लिखता हूँ मिटाता हूँ
मै मुफ़लिस मेरे पास सिर्फ मुहब्बत की चादर है,
मेरे घर मेहमान आता है तो वही चादर बिछाता हूँ
बूढा हो गया हूँ मेरे पास चंद पुरानी यादे ही शेष हैं
जो भी मिलता है मुकेश वही वही किस्सा सुनाता हूँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
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