Pages

Wednesday, 12 December 2018

वो ख़रामा ख़रामा अपने सफर में था

वो ख़रामा ख़रामा अपने सफर में था
मै भी चुपचाप उसके रहगुज़र में था

मै उसकी निगाहों में कंही भी न था 
मगर वो मुद्दतों से मेरी नज़र में था

दरिया में हम दोनों साथ ही उतरे थे
वो पार हो गया, मै बीच भंवर में था

जिन दिनों मै गुमनामियों में डूबा था 
उन  दिनों वो शह्र की हर ख़बर में था

चाहता तो मुझसे भी मिल सकता था
सुना है वो कल तलक मेरे शहर में था

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

No comments:

Post a Comment