वो ख़रामा ख़रामा अपने सफर में था
मै भी चुपचाप उसके रहगुज़र में था
मै उसकी निगाहों में कंही भी न था
मगर वो मुद्दतों से मेरी नज़र में था
दरिया में हम दोनों साथ ही उतरे थे
वो पार हो गया, मै बीच भंवर में था
जिन दिनों मै गुमनामियों में डूबा था
उन दिनों वो शह्र की हर ख़बर में था
चाहता तो मुझसे भी मिल सकता था
सुना है वो कल तलक मेरे शहर में था
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
मै भी चुपचाप उसके रहगुज़र में था
मै उसकी निगाहों में कंही भी न था
मगर वो मुद्दतों से मेरी नज़र में था
दरिया में हम दोनों साथ ही उतरे थे
वो पार हो गया, मै बीच भंवर में था
जिन दिनों मै गुमनामियों में डूबा था
उन दिनों वो शह्र की हर ख़बर में था
चाहता तो मुझसे भी मिल सकता था
सुना है वो कल तलक मेरे शहर में था
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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