वही शख्श मुझको रुला के गया
जो व्यक्ति मुझको हंसा के गया
कभी झील तो कभी दरिया बना
हर बार मेरी प्यास बुझा के गया
सोचा था चुप रहूँगा उम्रभर मगर
मेरे होठों पे सरगम सजा के गया
रेत् पे चित्र बनाए, साथ जिसके
वही तेज़ हवा बन मिटा के गया
धोखा दे के गया, कोईं बात नहीं
वो दुनियादारी तो सीखा के गया
मुकेश इलाहाबादी ---------------
जो व्यक्ति मुझको हंसा के गया
कभी झील तो कभी दरिया बना
हर बार मेरी प्यास बुझा के गया
सोचा था चुप रहूँगा उम्रभर मगर
मेरे होठों पे सरगम सजा के गया
रेत् पे चित्र बनाए, साथ जिसके
वही तेज़ हवा बन मिटा के गया
धोखा दे के गया, कोईं बात नहीं
वो दुनियादारी तो सीखा के गया
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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