एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Tuesday, 26 November 2019
रात, आँगन में चाँदनी नहीं आती
रात,
आँगन में चाँदनी नहीं आती
मेरे चेहरे पे अब हँसी नहीं आती
मीलो फैला रेगिस्तान हो गया हूँ
मेरे घर तक
कोई नदी नहीं आती
इस वक़्त
तन्हाई के गुप्प अँधेरे में हूँ
जहाँ कभी रोशनी नहीं आती
मुकेश इलाहाबादी -------------
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