Pages

Wednesday, 27 November 2019

ज़िन्दगी, सत्यनारायण की कथा नहीं,

एक
------
ज़िन्दगी,
सत्यनारायण की कथा नहीं,
जिसे कोई ब्राह्मण देवता आ कर बाँचेंगे,
जिसके सुखद अंत पे
शंख बजेगा , प्रसाद बंटेगा
हम खुश- खुश घर जायें

ज़िंदगी तो पोथी है
जिसे ख़ुद ही लिखना
ख़ुद ही बांचना पड़ता है
ज़िंदगी की पोथी पढ़ने के लिए
ख़ुद ही जजमान और
खुद ही पुरोहित बनना पड़ता है
फल फूल और हवन में खुद की
आहुति देनी होती है

ज़िंदगी की कथा का अंत
हर बार सत्यनाराण की कथा सा
सुखद नहीं होता है 
बहुत बार इसका अंत दुःखद ही होता है
इस कथा की समाप्ति पर 
शंख ध्वनि की जगह
हमारे रुदन का मौन कोलाहल होता है

और एक न खत्म होने वाला सन्नाटा भी हो सकता है

दो
-------

ईश्क,
किसी कथा से कम नहीं
बस, बात इतनी सी है
इसे कोई पुरोहित नहीं बाँचता
न कोई जजमान सुनता है
इसमें तो जोड़े में से ही
कभी,एक जजमान बनता है
तो दूसरा पुरोहित बन जाता है
फिर कभी दूसरा जजमान बनता है
तो पहला पुरोहित बन जाता है
और इस तरह
ईश्क़ की कथा सुन के आनंदित होते हैं
दो प्रेमी
पर - इस कथा का अंत भी
कोई ज़रूरी नहीं सत्यनारायण की कथा सा
सुखद हो, बहुत बार
कथाए ईश्क़ दुःखद ही होती है


पर ये तो सत्य है,
चाहे ज़िन्दगी की कथा हो
या इश्क की कथा
ख़ुद ही लिखना खुद ही बाँचना होता है
इसमें कोई पुरोहित नहीं होता
कोई जजमान नहीं होता

मुकेश इलाहाबादी ---------------------


No comments:

Post a Comment