Pages

Thursday, 21 November 2019

जैसे, कोई बिछा दे मखमली घास

जैसे,
कोई बिछा दे
मखमली घास
खुरदुरी राहों में
और,
राही की राह हो जाए आसान
बस ऐसे ही तुम हँसती हो तो
बिछ जाती है
रजनीगंधा की महमहाती चादर
हो जाती है राहे ज़िंदगी
खुशबू - खुशबू,
खुशनुमा - खुशनुमा
देखो ! अब ये सुन के तुम सिर्फ
मुस्कुराना नहीं बल्कि खिलखिलाना ज़ोर से
मुकेश इलाहाबादी ----------------

No comments:

Post a Comment