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Friday, 22 September 2023

अच्छा हुआ मन के पाँव नहीं होते

 अच्छा हुआ

मन के पाँव नहीं होते
वरना मन को तुम तक चल कर आना होता
थक जाने पर मन को
अपने पाँवो के लिए
ढूंढना होता किसी पेड़ की छाँह
प्यास लगने पर जाना होता
मन को किसी नदी
या प्याऊ के पास
राह में पहाड़ आ जाने पे
ठिठक जाना पड़ता
या फिर बदलनी होती राह
यही नहीं
पाँव - पाँव मन के आने में
मुहब्बत के दुश्मनो का भी खतरा होता
जो न जाने किधर से आ कर घेर लेते
मुहब्बत से लबरेज़ मन को
और मार गिराते
और तुम देखते रह जाती राह
इसी तरह अच्छा हुआ
मन के पँख न हुए
वर्ना मन को उड़ के पहुँचना होता तुम तक
तो पहले तौलना होता अपने परों की जान
और उड़ना होता आकाश में दूर तक
बचते हुए चील और गिद्धों से
तब कंही जा के मन तुम तक पहुँचता
और अगर कंही किसी शिकारी ने
गुलेल तान दी होती
या बिछाया होता जाल
तो शायद मन तुम तक कभी न पाता
और तुम देखती रह जाती राह
बहुत - बहुत दिनों तक
मुकेश इलाहाबादी -------------
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