उंगलियों के ज़ख्म बताते हैं
हमने पत्थर पे बुत तराशे हैं
अपने आंसू पलकों में छुपाकर
कुछ लोग दूसरों को हंसाते हैं
दश्ते तीरगी में भी रह कर, हम
दूसरों के दर पे दिए जलाते हैं
जिनके घुनघुने में दाने हैं कम
वे ही अक्शर बहुत शोर मचाते हैं
ये हुनर तू भी सीख ले ऐ मुकेश,
कैसे हर शेर मोती सा सजाते हैं
मुकेश इलाहाबादी
utam-***
ReplyDeletethnx Aditya jee for likign this post
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