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Sunday, 4 March 2012

दश्त ऐ तीरगी में खोजता है क्या ?


बैठे ठाले की तरंग ------------

दश्त ऐ तीरगी में खोजता है क्या ?
उदास रातों में बैठ सोचता है क्या ?

घर से निकल,  कुछ  धाम तो कर
यूँ अपनी किस्मत को रोता है क्या ?

जिसे जो करना है, कर दिखाता है
वो यूँ बढ़ चढ़ कर बोलता है क्या ?

इरादा बुलंद कर अपना औ चल तू
तुझे बीच सफ़र कोई रोकता है क्या ?

एक फूल चुन ले, और भरपूर रस ले
भंवरे  सा  इधर  उधर डोलता है क्या ?

मुकेश महफ़िल में जो सुनाना है सुना
तेरी ग़ज़ल के बीच,कोई टोकता है क्या ?

मुकेश इलाहाबादी -------

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