बैठे ठाले की तरंग ------------
दश्त ऐ तीरगी में खोजता है क्या ?
उदास रातों में बैठ सोचता है क्या ?
घर से निकल, कुछ धाम तो कर
यूँ अपनी किस्मत को रोता है क्या ?
जिसे जो करना है, कर दिखाता है
वो यूँ बढ़ चढ़ कर बोलता है क्या ?
इरादा बुलंद कर अपना औ चल तू
तुझे बीच सफ़र कोई रोकता है क्या ?
एक फूल चुन ले, और भरपूर रस ले
भंवरे सा इधर उधर डोलता है क्या ?
मुकेश महफ़िल में जो सुनाना है सुना
तेरी ग़ज़ल के बीच,कोई टोकता है क्या ?
मुकेश इलाहाबादी -------
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