एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Tuesday, 24 July 2012
बस एक बार
बस
एक बार
मौन के
गहन गह्वर मे
डूब कर
अपने मन को
द्वार बन जाने दो
देखना
तब --
तोड़ लूँगा
तुम्हारा हृदय पाषाण
ताकि बह सके
स्वच्छ स्फटिक प्रेमजल
जिसे तुम खुद
उलीचना चाहोगी
एक बार नहीं सौ बार
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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