सार्वभौमिक तत्वों में 'प्रेम' एक महत्वपूर्ण तत्व है.
'प्रेम' ही वह तत्व है जिसके धागे से पूरा परिवार पूरा समाज, देश और विश्व बंधा है.
लैंगिक द्रष्टिकोण से देखें तो 'प्रेम' स्त्रियोचित गुण माना गया है . शायद इसका कारण है, इस तत्व का स्त्रियों में प्रमुखता से प्रकटीकरण होना रहा है. चूंकि 'प्रेम' तत्व एक मधुर और म्रदुल तत्व है जो स्त्रियों का भी एक ख़ास गुण है (ये भी हो सकता है प्रेम के कारण ही स्त्रियों में
मधुरता और मृदुलता हो)
वैसे तो 'प्रेम' तत्व 'स्त्री-पुरुष' दोनों में सामान मात्र में आवेशित होता है .जंहा स्त्री का प्रेम हृदय में अंकुरित हो कर 'मन' मे विस्तार पाता है और फिर 'शरीर' के ताल पर मुखरित होता है. इसी लिए शायद स्त्री पहले अपना ह्रदय सौपती है फिर मन और फिर अंत मे तन सौप के अपना सब कुछ प्रेमी पे न्योछावर कर देती है. अत्यंत 'प्रेम' से. जबकि 'पुरुष' पहले शरीर की और आकर्षित होता है फिरमन मे स्त्री को पैथाता है और अंत मे ह्रदय मे स्थान देता है.
यात्रा की इसी भिन्नता के कारण दोनों का प्रेम एक दुसरे को अक्शरकिसी एक बिंदु पर मिलने के पहले ही पारे सा बिखरजाता है.और फिर दोनों 'स्त्री- पुरुष' अपने अपने केन्द्रों मे अतृप्त रह जाते हैं.
मुकेश इलाहाबादी -----------------
मधुरता और मृदुलता हो)
वैसे तो 'प्रेम' तत्व 'स्त्री-पुरुष' दोनों में सामान मात्र में आवेशित होता है .जंहा स्त्री का प्रेम हृदय में अंकुरित हो कर 'मन' मे विस्तार पाता है और फिर 'शरीर' के ताल पर मुखरित होता है. इसी लिए शायद स्त्री पहले अपना ह्रदय सौपती है फिर मन और फिर अंत मे तन सौप के अपना सब कुछ प्रेमी पे न्योछावर कर देती है. अत्यंत 'प्रेम' से. जबकि 'पुरुष' पहले शरीर की और आकर्षित होता है फिरमन मे स्त्री को पैथाता है और अंत मे ह्रदय मे स्थान देता है.
यात्रा की इसी भिन्नता के कारण दोनों का प्रेम एक दुसरे को अक्शरकिसी एक बिंदु पर मिलने के पहले ही पारे सा बिखरजाता है.और फिर दोनों 'स्त्री- पुरुष' अपने अपने केन्द्रों मे अतृप्त रह जाते हैं.
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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