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Sunday, 9 September 2012

उसका मिजाज़ तल्ख़ था


   उसका मिजाज़ तल्ख़ था
   मेरा भी लहजा सख्त था

  ऊपर से तो ठहरा लगता
  दिल मे  तूफ़ान  ज़ब्त था

  मैंने भी होठ सिल लिए थे
  न मौक़ा न माकूल वक़्त था  

  वह भी कभी हरा भरा था
 जो आज सूखा दरख़्त था

 उससे कभी मिल ना पाया
 हर लम्हा मेरा  व्यस्त था


 मुकेश इलाहाबादी ------------

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