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Sunday, 21 October 2012

नका़ब के भीतर चेहरा देखा

नका़ब के भीतर चेहरा देखा
चेहरे के उपर  चेहरा देखा

मासूम बच्चों की मुस्कानो मे
कितना उजला चेहरा देखा,

मुददतों बाद आइना देखा,
शिकन  से भरा चेहरा देखा

मुखौटा उतार के हमने देखा
सबका भददा चेहरा देखा

दिन मे  जिसको हंसता देखा
उसका रात मे रोता चेहरा देखा

अपने अंदरा जा के देखा
स्वार्थ से लिपटा चेहरा देखा

मुकेश इलाहाबादी ----------

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