चांद मुझको जलता हुआ लगे
चांद मुझको जलता हुआ लगे
जिस्म अपना उबलता हुआ लगे
सदियों की जमी बर्फ हो जैसे
आज कुछ पिघलता हुआ लगे
आसमा से टूट कर सितारा
जमीन से मिलता हुआ लगे
मौसम है खिजां का, मगर,
फूल कोई खिलता हुआ लगे
जो दिल उदास रहा करता था
आज क्यूं मचलता हुआ लगे
मुकेश इलाहाबादी ------------
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