जीभ से होठो को तर कर लेता है
प्यास को वो झूठी तसल्ली देता है
जब भी तिश्नगी हद से गुज़रती है
क़तरा भी समन्दर दिखाई देता है
कि कुछ लोग दरिया छुपाये बैठे हैं
और ज़माना प्यासा दिखाई देता है
सोख रहा है सुबह के गाल से ओस
आफताब भी प्यासा दिखाई देता है
जब धरती प्यास से कुनमुनाती है
तब बादल बरसता दिखाई देता है
इन झील सी आखों में डूब जाने दो
कि मुकेश भी प्यासा दिखाई देता हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------
प्यास को वो झूठी तसल्ली देता है
जब भी तिश्नगी हद से गुज़रती है
क़तरा भी समन्दर दिखाई देता है
कि कुछ लोग दरिया छुपाये बैठे हैं
और ज़माना प्यासा दिखाई देता है
सोख रहा है सुबह के गाल से ओस
आफताब भी प्यासा दिखाई देता है
जब धरती प्यास से कुनमुनाती है
तब बादल बरसता दिखाई देता है
इन झील सी आखों में डूब जाने दो
कि मुकेश भी प्यासा दिखाई देता हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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