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Saturday, 25 January 2014

जीभ से होठो को तर कर लेता है

जीभ से होठो को तर कर लेता है
प्यास को वो झूठी तसल्ली देता है

जब भी तिश्नगी हद से गुज़रती है
क़तरा भी समन्दर दिखाई देता है

कि कुछ लोग दरिया छुपाये बैठे हैं
और ज़माना प्यासा दिखाई देता है

सोख रहा है सुबह के गाल से ओस
आफताब भी प्यासा दिखाई देता है

जब धरती प्यास से कुनमुनाती है
तब बादल बरसता दिखाई देता है

इन झील सी आखों में डूब जाने दो
कि मुकेश भी प्यासा दिखाई देता हैं

मुकेश इलाहाबादी -------------------

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