कभी सुख तो कभी दुख लाती हैं जिंदगी
जाने क्या क्या येे रंग दिखाती है जिंदगी
कभी दूर तक धूप ही धूप के मंजर मिलेगें
कभी तो ये ठंडी छांव में सुलाती हैं ज़िंदगी
पहले तो अपने जाल में फंसाती है सबको
फिर हमारी मजबूरी पे मुस्काती है जिंदगी
उम्र गुजर जाती है सुलझाने में इसको पै
हर रोज नये तरीके से उलझाती हैं जिंदगी
मुकेश ज़िदगी के कीचड से उबर गये तोे
कंवल के फूल सा खिल जाती है जिंदगी
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
जाने क्या क्या येे रंग दिखाती है जिंदगी
कभी दूर तक धूप ही धूप के मंजर मिलेगें
कभी तो ये ठंडी छांव में सुलाती हैं ज़िंदगी
पहले तो अपने जाल में फंसाती है सबको
फिर हमारी मजबूरी पे मुस्काती है जिंदगी
उम्र गुजर जाती है सुलझाने में इसको पै
हर रोज नये तरीके से उलझाती हैं जिंदगी
मुकेश ज़िदगी के कीचड से उबर गये तोे
कंवल के फूल सा खिल जाती है जिंदगी
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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