मैं,
अपनी हथेलियों
में, समेट लूँ
पूरा का पूरा 'चाँद'
तुम,
रख दो गुलाब की
दो पंखुड़ियाँ
मेरे जलते हुए
माथे पे
और फिर,
क़यामत आ जाये
मुकेश इलाहाबादी --------
अपनी हथेलियों
में, समेट लूँ
पूरा का पूरा 'चाँद'
तुम,
रख दो गुलाब की
दो पंखुड़ियाँ
मेरे जलते हुए
माथे पे
और फिर,
क़यामत आ जाये
मुकेश इलाहाबादी --------
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