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Tuesday, 30 April 2019

तुम्हारे प्यार में हूँ

मै
तुम्हारे प्यार में हूँ
या मै तुम्हे प्यार करता हूँ
हो सकता है दोनों बातें एक ही लगती हो
पर ऐसा मै नहीं समझता
क्यों कि तुम्हारे प्यार में होने का अर्थ है
तुम मेरे और मै तुम्हारे स्वाभाव में शामिल हूँ
मेरे पास कोइ ऑप्शन नहीं है
और न कोई इक्षा तुमसे अलग होने की
जब कि प्यार करने का अर्थ हुआ
मै वो कर रहा हूँ जो मेरा स्वाभाव नहीं है
यानि ऑप्शन मौजूद है
किसी और को चाहने या न चाहने का

इस लिए अब मै  ये नहीं कहूंगा
मै तुम्हे प्यार करता हूँ

बल्कि कहूंगा -
मै तुम्हारे प्यार में था
तुम्हारे प्यार में हूँ
और तुम्हारे प्यार में रहूंगा

क्यूँ समझ रही हो न ? मेरी सुमी

मुकेश इलाहाबादी ----------------
या मै तुम्हे प्यार करता हूँ
हो सकता है दोनों बातें एक ही लगती हो
पर ऐसा मै नहीं समझता
क्यों कि तुम्हारे प्यार में होने का अर्थ है
तुम मेरे और मै तुम्हारे स्वाभाव में शामिल हूँ
मेरे पास कोइ ऑप्शन नहीं है
और न कोई इक्षा तुमसे अलग होने की
जब कि प्यार करने का अर्थ हुआ
मै वो कर रहा हूँ जो मेरा स्वाभाव नहीं है
यानि ऑप्शन मौजूद है
किसी और को चाहने या न चाहने का

इस लिए अब मै  ये नहीं कहूंगा
मै तुम्हे प्यार करता हूँ

बल्कि कहूंगा -
मै तुम्हारे प्यार में था
तुम्हारे प्यार में हूँ
और तुम्हारे प्यार में रहूंगा

क्यूँ समझ रही हो न ? मेरी सुमी

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Sunday, 28 April 2019

नम्र तो हैं पर मग़रूर बहुत हैं

नम्र तो हैं पर मग़रूर बहुत हैं
लोग यहाँ के मशरूफ बहुत हैं

जिस्म तो पास पास हैं मगर
दिल इक दूसरे से दूर बहुत हैं

रूह पे गर्द की परत दर परत
चेहरे पे बनावटी नूर बहुत हैं

मुकेश इलाहाबादी -------------

Friday, 26 April 2019

मेरे घर में भी एक चिड़िया है

मेरे
घर में भी  एक चिड़िया है
कुछ
काली कुछ भूरी
आँखों वाली चिड़िया
जो हर वक़्त उड़ती फिरती है
पूरे घर में
कभी बेड रूम - कभी ड्राइंग रूम
कभी बॉलकनी तो कभी किचन
अक्सर जब वो उड़ -उड़ के थक चुकी होती है
तब आते ही
मेरे  कंधे पे अपनी चोंच रख के
आँखों को नचाती  है
न जाने क्या -क्या इशारे करती है - कहती है
सुनती है तब मै सिर्फ और सिर्फ
उस चिड़िया को मन्त्र बिद्ध सा देखता हूँ
कुहकते हुए 
और उस की आँखों की भाषा अपनी हथेली से
समझने के लिए 
उसे सहलाता हूँ
तो  वह 
हंसती हुई फिर से
फुर्र - फुर्र उड़ जाती है
अक्शर किचन में ही उड़ के जाती है 

और तब  मै मुक्सुराता हुआ - चाय के इंतज़ार में होता हूँ

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

Tuesday, 16 April 2019

रीढ़

मैंने
शायद ही कभी
अपने पिता की रीढ़ को
सीधी और तनी देखा है
सिवाय खाट पे सीधे लेटने  के
बाकी हमेसा झुके हुए ही पाया
कभी ज़िम्मेदारियों के बोझ से
कभी महंगाई के बोझ से
तो कभी बड़ी होती पुत्रियों और
बेरोज़गार पुत्र को देख कर
कई बार खीझ भी जाता
पिता सीधे और तन के क्यों नहीं चलते
किन्तु पिता सिर्फ मुस्कुरा के रह जाते
और कुछ न कहते

पर मेरी भी रीढ़ उस दिन थोड़ा झुक गयी
जिस दिन बाप बना
बाकी उस दिन झुक गयी जिस दिन 
जिस दिन पिता की अर्थी उठाई थी

और अब मै भी झुकी रीढ़ का हो गया हूँ

और अब मेरा बेटा मेरे सामने तन के चलता है
सीधी रीढ़ से

मुकेश इलाहाबादी --------------------

नीम की पत्ती

मीठे
शब्दों की चासनी में
अपने स्वार्थ को नहीं परोसने से बेहतर 
मै बना रहना चाहता हूँ
कड़वी नीम की पत्ती
भले तुम उसे थोड़ा चबा के थूंक दो
पर जिसकी तासीर तो तुम्हारे लिए
स्वास्थ्य वर्धर्क तो होगी

अब ये तुम्हे तय करना है
तुम्हे क्या पसंद है 

मुकेश इलाहाबादी --------------------

Friday, 12 April 2019

मेरे लिए कविता

मेरे
लिए कविता लिखना
महज़ आदत नहीं है
कविता के द्वारा 
तुम्हरी यादों की बेल को
काटता छाँटना और सहेज के
मन के गुलदश्ते में सजाना होता है 

कविता
लिखना मेरे लिए
चारों तरफ फ़ैली रेत् को उलीचना
और उसके नीचे बहते जल को ढूंढना भी है 

कविता लिखना और पढ़ना
मेरे लिए
प्राण वायु को अंदर लेना और बाहर ले जाना भी है
या कह सकते हो
कविता पढ़ना और लिखना
मेरे लिए साहित्यिक प्राणायाम भी है

 मुकेश इलाहाबादी ----------------

Wednesday, 10 April 2019

मशीन का पुर्जा हूँ ?



नेता
मुझे वोट बैंक समझता है
पांच साल में सिर्फ
चुनाव के वक़्त महत्व देता है 

मेरा
मालिक मुझे
मशीन का पुर्जा समझता है
थोड़ा भी ख़राब होने पर रिपेयरिंग की जगह
रेप्लस करना बेहतर समझता है

और मेरे बच्चे
की स्कूल प्रिंसिपल
लिए मै अभिभावक कम 
कस्टमर ज़्यादा हूँ 

और,
नगर श्रेष्ठि
जब अपनी बड़ी सी गाड़ी से
निकलता है
मुझ जैसे फुटपाथ पे चलने वाले को
कीड़ा मकोड़ा समझता है
और ढेर सारी धुल उडाता फुर्र से
आगे निकल जाता है

तब मै गाड़ी की धूल से खुद को बचाते हुए
यह सोचने लगता हूँ
कि मै
वोट बैंक हूँ ?
मशीन का पुर्जा हूँ ?
कस्टमर हूँ ?
या इंसान हूँ ?

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,




लगती हो कोइ देवी

जब 
भी तुम एक पांव के नीचे
दबा के ढोलक
देती ही मीठी - मीठी थाप
अपने मेहंदी लगे
कंगन पहने हाथो से
थोड़ी से गर्दन झुका के
और मुस्कुरा के गाती हो 
चैती / कजरी / होरी
बन्नी - बन्ना या कोइ देवी गीत
तब सच मुझे वो खुद बा खुद
लगती हो कोइ देवी
आसमान से उतरी हुई

मुकेश इलाहाबादी --------

Tuesday, 9 April 2019

तुम्हारे गाल


कपास
के फूल हैं
तुम्हारे गाल
सर्दियों में खिल जाते हैं
स्वेत रूई के फाहों सा
जिन्हे हथेलियों में लेते ही
होता है गुनगुनी गर्माहट का एहसास

और यही तुम्हारे
गाल तपते मौसम में हो जाते हैं
बर्फ के गोले जिन्हे देखने भर से ही
मिल जाती है शीतलता


और - जब तुम हंसती हो तो
लगता है कोई दूधिया झरना फूट पड़ा हो
बर्फ की स्वेत चट्टानों से

सच
सुमी : तुम्हारे गाल
कपास के फूल हैं - बर्फ के गोले हैं
और तुम्हारी हंसी है दूधिया झरना
जिसे तुम ऐसे ही बहते रहने देना

मुकेश इलाहाबादी --------------

Monday, 8 April 2019

अजीब औरत

वो
जब दुःखी होती है
अपना सारा दुःख मेरे पास उलीच जाती है
वो जब खुश होती है
अपने सारी खुशी मुझसे साझा कर जाती है
वैसे अक्सर मुझसे घंटो बतिया जाती है
पर ये भी कह जाती है
जता जाती है "मै तुमसे प्यार नहीं करती "
तब मै उसे टुकुर -टुकुर देखता हूँ
और चुप रह जाता हूँ

एक दिन वो कहने लगी
'मेरा आदमी मुझसे प्यार नहीं करता
ये कह वो रोने लगी
मैंने उसे गले लगा लिया
उसकी चिकनी पीठ पे हाथ फेरने लगा
मैंने उसे ढांढस बंधाया वो थोड़ा चुप हुई
और देर तक सुबुक्ती रही
फिर मैंने उसे कई जोक सुनाए
वो ज़ोर ज़ोर हंसने लगी और फिर एक बार
खुशी से मुझसे लिपट गयी
ये बात उसके आदमी को पता लगी
उसने उस अजीब औरत को खूब भला बुरा कहा
और पीटा भी
उसे अँधेरे कमरे में भी बंद कर दिया
कई दिन हो गए तो मैंने उसके अँधेरे कमरे में रोशनदान से झाँक कर
कहा "तुम को तुम्हारे आदमी ने पीटा ?
"हाँ "
तुम्हे खाना भी नहीं दिया कई दिन से ?
"हाँ " नहीं दिया
तुम्हे अँधेरे कमरे में भी बंद कर दिया
"हाँ "
"तुम इतना सब क्यों सहती हो ?"
"क्यों की मै उससे प्यार करती हूँ " उस अजीब औरत ने कहा
"तुम ऐसा क्यों नहीं करती मेरे साथ चलो
मै तुम्हे ताज़ी हवा दूंगा
खूब बड़ा सा आसमान दूंगा
चाँद सितारों से सजी ओढ़नी दूंगा "
ये सब उसने सुना
और कहा " शुक्रिया तुमने मेरे बारे में इतना सोचा
पर मै तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगी "
'क्यूँ '
क्यू कि मै तुमसे प्यार नहीं करती हूँ

यह सुन मैंने - उस अजीब औरत को
अजीब सी निगाहों से देखा

और मै बुड़बुड़ाता हुआ "अजीब औरत है - अजीब औरत है
वापस चला आया

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

Thursday, 4 April 2019

कुछ ख्वाब कुछ हसरतें अधूरी रही

कुछ ख्वाब
कुछ हसरतें अधूरी रही 
हम -तुम पास रहे
फिर भी दूरी रही

माना
हमने इज़हारे मुहब्बत न किया 
तुम भी चुप रहे
हया तुम्हारी मज़बूरी रही


मुकेश इलाहाबादी ----------



Wednesday, 3 April 2019

रेत् की नदी मिली मुझको

रेत् की नदी मिली मुझको
ऐसी ज़िंदगी मिली मुझको

कहने को बहुत लोग मिले
सिर्फ तू नहीं मिली मुझको

तेरे संग साथ का सुख न था
वर्ना हर खुशी मिली मुझको

मुकेश इलाहाबादी ---------

Tuesday, 2 April 2019

खुश रहता हूँ हर हालात में

खुश रहता हूँ हर हालात में 
रोता नहीं मै किसी बात पे  

न गर्मी से रही न सर्दी से  
न शिकायत है बरसात से 

मै सितारा दिन में सोता हूँ 
चाँद से बतियाऊंगा रात में 

मुकेश इलाहाबादी ---------

खुश रहता हूँ हर हालात में

खुश रहता हूँ हर हालात में
रोता नहीं मै किसी बात पे 

न गर्मी से रही न सर्दी से 
न शिकायत है बरसात से

मै सितारा दिन में सोता हूँ
चाँद से बतियाऊंगा रात में

मुकेश इलाहाबादी ---------

Monday, 1 April 2019

चाँद मगरूर नहीं है तो

अगर
चाँद मगरूर नहीं है तो उसे भूलने की बीमारी है
रात मैंने
उससे पूछा "मुझसे  दोस्ती करोगे?"
चाँद ने मुझे देखा
कुछ सोचा
मुस्कुराया
कुछ जवाब देता
इसके पहले बादलों ने उसे ढँक लिया

बादलों से बाहर जब तक निकलता चाँद
तब तक वो सफर करता हुआ बहुत आगे निकल चूका था
और ये बात भूल भी चूका था "कि मैंने उससे दोस्ती का हाथ माँगा है "

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------