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Saturday, 16 January 2021

करता है वो अपनी मन मर्ज़ी का

 करता है वो अपनी मन मर्ज़ी का 

ये दिल सुनता कहाँ है किसी का 


जहाँ दरिया बहा करता था वहाँ 

निशान बता रहे हैं सुखी नदी का 


अपने हौसले व बाजुओं के बाद 

करता हूँ भरोसा सिर्फ खुदी का 


न झील है न दरिया न समन्दर 

क्यां करूँ मै अपनी तिश्नगी का 


न ज़ख्म भरे न ही दवा मिली  

क्या करूँ मै ऐसी ज़िंदगी का 


मुकेश इलाहाबादी -----------

Tuesday, 5 January 2021

ये और बात जुबान नहीं रखता आईना

 ये और बात जुबान नहीं रखता आईना

हमेशा सच को सच है दिखाता आईना
ऐसा भी नहीं कि कुछ नहीं बोलता है
सुनोगे तो बहुत कुछ बोलेगा आईना
बेवजह हाथ तुम्हारे ज़ख़्मी हो जाएंगे
मत छू मुझे मै हूँ चटका हुआ आईना
किसी और आईने की जरूरत ही नहीं
अपने दिल को ही बना लिया आईना
मुकेश इलाहाबादी ---------------

सारे ख़्वाब तोड़ आया हूँ

 सारे ख़्वाब तोड़ आया हूँ

गए साल में छोड़ आया हूँ
फिजां में धुंध ही धुंध थी
मै कोहरा ओढ़ आया हूँ
जहाँ तेरा नाम लिखा था
वो पन्ना मोड़ आया हूँ
तेरी यादें बेवफा निकलीं
उनको भी छोड़ आया हूँ
तेरे लिए दुआएं लिख के
मंदिर में छोड़ आया हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---

मेरे पास पर नहीं उड़ सकता नहीं

 मेरे पास पर नहीं उड़ सकता नहीं

चाँद है कि फलक से उतरता नहीं
एक मै मनाने का हुनर आता नहीं
एक वो रूठ जाए तो मानता नहीं
पहले उसी ने कहा आ सैर पे चलें
अब मै राजी हुआ तो चलता नहीं
खामोश हो जाये तो बोलता नहीं
बोलने पे आये तो चुप रहता नहीं
जो पूछता हूँ मुझे प्यार करते हो
बस मुस्कुराता है कुछ कहता नहीं
मुकेश इलाहाबादी ------

देखना इक दरिया बहेगा अब

 देखना इक दरिया बहेगा अब

जमा हुआ दर्द पिघलेगा अब
सूरज ने मुझको सोख लिया
दर्द आसमाँ से बरसेगा अब
जिसने मेरा फ़साना न सुना
मेरी खामोशियाँ सुनेगा अब
मै खश्बू बन गया उसके लिए
मुझे साँसो में मह्सूसेगा अब
दिन के उजाले में देखा नहीं
स्याह रातों में मुझे ढूंढेगा अब
मुकेश इलाहाबादी ------

आवाहन

 आवाहन 

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युगों 

पहले हरे- भरे पेड़, पहाड़ 

और कलकल करती नदियों 

व झरनो से आच्छादित 

अपनी धुरी पे घूमती हुई 

खूबसूरत सी धरती पे 

मनुष्य ने जन्म लिया 


मनुष्य ने अपनी वृद्धि के लिए 

आवाहन किया देवताओं का 

देवता प्रसन हुए 

देवलोक छोड़ धरती पे आये 

 आने जाने लगे मनुष्यों संग रहने लगे 

और करने लगे मनुष्यों  की वृद्धि और पुष्टि 


फिर मनुष्य ने 

आवाहन किया यक्षों का 

यक्षों ने भी धरती पे आ के बनाई सोने सी लंका 

और मनुष्यों को सिखाया वास्तु शास्त्र 

और किया हमारे धन की रक्षा 


इसी तरह मनुष्य ने आवाहन किया 

गंधर्वों को किन्नरों को 

उन्होने ने दी मनुष्यों को 

नृत्य और गान की बेहतर शिक्षा 


आवाहन से ही आईं 

धरती पे आईं अप्सराएं 

जिन्होंने देवताओं और मनुष्यों के लिए 

अपने दैवीय नृत्य और ख़ूबसूरती से की एक 

दिव्य आनंद की सृष्टि 


फिर एक दिन 

मनुष्यों ने खेल खेल में 

आवाहन कर डाला 

असुरों का 

पिशाचों का 

प्रेतों का 

जिन्होंने आ कर शुरू कर दिया 

एक वीभत्स नृत्य 

और शुरू हुआ एक 

विनाशकारी युद्ध 

जिससे खिन्न हो कर 

सभी शांति प्रिय देवता 

यक्ष / किन्नर वापस लौट गए 

अपने अपने लोक में 

यहाँ तक की 

लौट गयीं खूबसूरत अप्सराएं भी 

तब से पृथ्वी पे शुरू है 

महारास की जगह 

एक अंतहीन तांडव 

असुरों का 

प्रेतों का 

मनुष्यों का 

हाला कि इन सब के बावजूद 

धरती अपनी धूरी पे उसी तरह घूम रही है 

पर अब उसके नृत्य में वो 

हंसी व खुशी नहीं है 

बल्कि एक उदासी और रुदन है 


मुकेश इलाहाबादी ----------------