आवाहन
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युगों
पहले हरे- भरे पेड़, पहाड़
और कलकल करती नदियों
व झरनो से आच्छादित
अपनी धुरी पे घूमती हुई
खूबसूरत सी धरती पे
मनुष्य ने जन्म लिया
मनुष्य ने अपनी वृद्धि के लिए
आवाहन किया देवताओं का
देवता प्रसन हुए
देवलोक छोड़ धरती पे आये
आने जाने लगे मनुष्यों संग रहने लगे
और करने लगे मनुष्यों की वृद्धि और पुष्टि
फिर मनुष्य ने
आवाहन किया यक्षों का
यक्षों ने भी धरती पे आ के बनाई सोने सी लंका
और मनुष्यों को सिखाया वास्तु शास्त्र
और किया हमारे धन की रक्षा
इसी तरह मनुष्य ने आवाहन किया
गंधर्वों को किन्नरों को
उन्होने ने दी मनुष्यों को
नृत्य और गान की बेहतर शिक्षा
आवाहन से ही आईं
धरती पे आईं अप्सराएं
जिन्होंने देवताओं और मनुष्यों के लिए
अपने दैवीय नृत्य और ख़ूबसूरती से की एक
दिव्य आनंद की सृष्टि
फिर एक दिन
मनुष्यों ने खेल खेल में
आवाहन कर डाला
असुरों का
पिशाचों का
प्रेतों का
जिन्होंने आ कर शुरू कर दिया
एक वीभत्स नृत्य
और शुरू हुआ एक
विनाशकारी युद्ध
जिससे खिन्न हो कर
सभी शांति प्रिय देवता
यक्ष / किन्नर वापस लौट गए
अपने अपने लोक में
यहाँ तक की
लौट गयीं खूबसूरत अप्सराएं भी
तब से पृथ्वी पे शुरू है
महारास की जगह
एक अंतहीन तांडव
असुरों का
प्रेतों का
मनुष्यों का
हाला कि इन सब के बावजूद
धरती अपनी धूरी पे उसी तरह घूम रही है
पर अब उसके नृत्य में वो
हंसी व खुशी नहीं है
बल्कि एक उदासी और रुदन है
मुकेश इलाहाबादी ----------------