करता है वो अपनी मन मर्ज़ी का
ये दिल सुनता कहाँ है किसी का
जहाँ दरिया बहा करता था वहाँ
निशान बता रहे हैं सुखी नदी का
अपने हौसले व बाजुओं के बाद
करता हूँ भरोसा सिर्फ खुदी का
न झील है न दरिया न समन्दर
क्यां करूँ मै अपनी तिश्नगी का
न ज़ख्म भरे न ही दवा मिली
क्या करूँ मै ऐसी ज़िंदगी का
मुकेश इलाहाबादी -----------
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